वो एक मुलाकात
वो एक मुलाकात बड़ी अनोखी थी,
जब पहली बार मेरी तुमसे कुछ बात हुई,
जहाँ हम थे वहा चारो ओर शोर था,
कहा था मेहफिल-ए-खाना,
और कहा बेठक का हॉल था,
बस यूँ ही इधर उधर देख घूम रहे थे दोनों,
जो था पसंद मन को वो किताबे ढूँढ रहे थे दोनों,
तुम भी अकेली थी कही
और मैं भी कहीं ओर था
इस social media के दौर में भी
हमे शायरीयों और कहानियों का शौक था
कुछ यूँ हुई शुरुआत थी
Photo खींचने की बात थी
कुछ तुमने मेरी मदद की थी
कुछ तस्वीरे मैंने तुम्हारी ली थी
दोनों का सवाल एक था,
पूछने का अंदाज़ एक था
'क्या आप अकेले आये हैं?'
जवाब दोनों को ऐसे मिला,
तुम मेरी दोस्त बन गयी,
मैं तुम्हारा दोस्त बन गया |
घंटो साथ मे बाते हुई,
ताज़ा सभी यादे हुई,
बात करते करते वक़्त बीत गया,
दोनों को लगी थी भूख,
तो कुछ खाने का मन किया,
तुम्हें चाय पसंद थी और मुझे पसंद थी कॉफी,
पैसे मिल कर देंगे इस बात पर हुए थे हम राज़ी,
मैं चाय लाया तुम्हारे लिए और लाया मैं खुद के लिए कॉफ़ी
लिख नंबर अपना तुमने एक पर्ची काफी के साथ मुझे थमा दी
सारी बातें साज़ा हुई,
दिन ढला और शाम हुई,
तुम्हें अपने घर जाना था,
अगले दिन न आने का इरादा था,
मैं चला तुम्हें जब छोड़ने तो
बात करेंगे ये वादा किया,
पर तुम्हें कैसे बताऊँ कि
मुझसे वो नंबर तुम्हारा कही खो गया,
मैं अपनी आदत से मजबूर
नाम भी तुम्हारा भूल गया,
वापिस कैसे बात हो तुमसे ये मैं सोचने लगा,
बाकी बाते तुम्हारी मुझे सारी याद है,
तुम डॉक्टर हो होम्योपैथिक की
तुम्हारी बातों मे छोटी छोटी गोलियों सी मिठास है |
बस इतनी ही शायद उस मुलाकात की कहानी थी,
दोनों की ही कुछ कुछ नादानी थी,
बस ये बाते दिल में रखता हूँ,
और कुछ सवाल मैं खुद को करता हूँ,
ऐ खुदा मेरे, ये भी कैसा पल भर का मिलना था,
मिलाया ही क्यूँ हमे जब इतनी जल्दी बिछड़ना था |
Written by
Roy
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